'आइए, वाई साहब!' दरवाजा खोलते हुए पूरी गर्मजोशी से मिस्टर एक्स ने कहा। 'आइए
भाभी जी!' दुगनी गर्मजोशी से उन्होंने कहा। मिसेज वाई के शरीर से आ रही खुशबू
उनके नथुने में पूरी तरह भर गई।
'अरे! कहाँ छुपे रहे हो बेटे?' मिसेज वाई के पीछे दुबके उनके पुत्र को देखकर
उन्होंने कहा, फिर अपने पुत्र को पुकारा, 'अंकुर! देखो कौन आया है?'
अंकुर आतुरता से आया। मिस्टर वाई, मिसेज वाई और उनके पुत्र ने उसे हैप्पी बर्थ
डे कहा। पुत्र ने गिफ्ट पकड़ाया। गिफ्ट का आकार देखते ही अंकुर ने उसे थैंक्स
कहा और गिफ्ट रखने अंदर चला गया। तब तक दो-चार बार कबर्ड को खोल-बंद कर डियो
का डबल डोज अपने शरीर पर डालकर मिसेज एक्स भी बाहर आ गईं और नमस्ते-नमस्ते
करने, बैठने का आग्रह करने के बाद आया को पानी के लिए आदेश देने लगीं।
तीन-चार बच्चे पहले ही आ गए थे। मिस्टर एक्स ने सबको आदेश-सा देते हुए कहा।
'बेटे! तुम लोग अंकुर के कमरे में जाकर खेलो।'
बच्चे अंदर चले गए। इधर जल-पान करने के बाद मिस्टर एक्स ने मिस्टर वाई से कहा,
'चलिए वाई साहब! टैरेस में बैठते हैं। यह जगह महिलाओं के लिए छोड़ देते हैं।'
अभी तक उपस्थित दोनों महिलाओें ने एक-दूसरे को देखा, होंठो पर मुस्कान बिखेरी
और स्वयं को सोफे पर स्थापित कर लिया।
उधर टैरेस पर केन की कुरसियों पर बैठते हुए मिस्टर वाई ने पूछा - 'और क्या हाल
हैं एक्स साहब?'
'बस, बढ़िया है सरजी!' मिस्टर वाई ने उत्साह में कहा। सामने की बालकनी की ओर
नजर डालते हुए उन्होंने तत्काल पूछा, 'नजर नहीं आ रही हैं आपकी?'
सूनी बालकनी की ओर नजर डालते हुए मिस्टर एक्स बोले, 'अरे। क्या बताऊँ सर जी?
सुना, कहीं घर ले लिया गंजे ने। साले बैंक वालों ने लोन जो बाँटना शुरू कर
दिया है, कोई किराए के मकान में रहना ही नहीं चाहता।'
मिस्टर वाई ठठाकर हँस पड़े। मिस्टर एक्स ने उनका खुलकर साथ दिया। घर के अंदर
उपस्थित औरतें शांत हो गईं। इससे पहले कि वे उठकर टैरेस तक आतीं, काल बेल बजी।
बजाने के अंदाज से मिस्टर एक्स समझ गए कि मिस्टर जेड आए हैं। उन्होंने मिस्टर
वाई से यह बात कही। मिस्टर वाई झुँझला उठे, 'अब झेलना पड़ेगा। पंडित जी, आपको
और कोई नहीं मिला था पड़ोसी?'
'अरे। वाई साहब, पड़ोसी कोई चुनकर बनाया जा सकता है क्या? और मान लो चुन भी लें
तो थोड़े दिनों में वह भी तो 'पड़ोसी' ही हो जाता है न? फिर उनका बेटा अंकुर के
साथ खेलता है, दोनों औरतें भी दिन भर एक-दूसरे से गप्पें मारती हैं' कहते-कहते
एक्स ने अपनी आवाज फुसफुसाहट में बदल दी, क्योंकि तब तक मिस्टर जेड टैरेस तक
पधार चुके थे। मिस्टर एक्स ने गर्मजोशी का दिखावा करते हुए उनका स्वागत किया।
मिस्टर वाई ने तो उठकर उनको गले ही लगा लिया। तीनों कुर्सी पर बिराज गए तो आया
कोल्ड ड्रिंक्स लेकर आई। आया के जाने के बाद मिस्टर वाई ने दबी जुबान में कहा
- 'वैसे एक्स साहब! आपकी आया भी कोई कम नहीं है।'
मिस्टर जेड ने आँखें नीची कर लीं, जैसे उन्होंने कुछ सुना ही न हो। मिस्टर
एक्स ने ओठों पर मुस्कान बिखेरी - जैसे उन्होंने मिस्टर वाई की बात का समर्थन
कर दिया हो।
'और जेड साहब! आपके क्या हाल हैं?' मिस्टर वाई ने पूछा और मिस्टर जेड ने
सकुचाते हुए जवाब दिया, 'ठीक ही है, भाईसाहब।'
'आप इतने उदास-उदास क्यों रहते हैं? किस चीज की कमी है आपको? जो बालकोनी एक्स
साहब को सुख देती है, वह आपसे कोई दूर भी तो नहीं है?'
मिस्टर वाई की बात पर मिस्टर जेड तो चुप ही रहे, मिस्टर एक्स का हृदय बोल पड़ा,
'जो कहिए वाई साहब! है बड़ी कमाल की चीज। साले गंजे ने सात जन्मों तक पुण्य किए
होंगे!'
'और उस बेचारी ने सात जन्मों तक पाप!' बताओे, कहीं जोड़ी बनती है इन दोनों की?
भगवान भी कैसे-कैसे खेल खेलते हैं? ...यहाँ देखो, हमारे नसीब में क्या बाँध
दिया?' मिस्टर वाई का बाँध भी ढह पड़ा था।
'अरे! एक मजेदार बात बताऊँ? मिस्टर एक्स ने मजा लेने वाले अंदाज में कहना जारी
रखा - 'वो सब्जी वाला है न चौराहे पर? वो एक दिन कह रहा था कि मैडम गई थीं
सब्जी लाने। इनके पैसे कम पड़ गए। इन्होंने कहा, 'भैया! पैसे बाद में ले लेना।
मेरे हसबैंड आते रहते हैं तुम्हारी दुकान में। तुम पहचानते ही होगे - गंजे
जैसे नहीं हैं? आगे जिनके बाल नहीं है!'
सबसे चेहरे पर मुस्कान आ गई। अपनी मुस्कान पकड़ाने के डर से मिस्टर जेड ने एक
अलग ही तान छेड़ दी - 'बिजली बिल इस बार बहुत ज्यादा आ गया है।'
चूँकि मिस्टर जेड मिस्टर एक्स की ओर देखकर बोल रहे थे, इसलिए मिस्टर एक्स को
जवाब देना जरूरी था - 'हाँ सो तो है। रेट कुछ बढ़ भी गए हैं। दूसरे, गर्मी इतनी
पड़ रही है कि बिना ए.सी. आप सो भी नहीं सकते।'
मिस्टर वाई ने जोड़ा - 'मेरा बेटा तो गर्मी से इतना परेशान हो जाता है कि क्या
कहूँ? एक दिन पूरी रात लाइट नहीं थी। मुझे कार स्टार्ट कर उसका ए.सी. चलाना
पड़ा। रात भर उसे लेकर कार में पड़ा रहा!'
मिस्टर वाई की इस बात पर मिस्टर एक्स मंद-मंद मुस्काए और मिस्टर जेड ने ओठों
को सामान्य बनाए रखकर अपने मन में ही कहा - 'हाँ, महोदय! आप अपने बेटे को जैसी
आदत डलवाएँगे वह तो वैसा ही व्यवहार करेगा न? ...वैसे मुझे आपकी औकात यानी
आपकी पृष्ठभूमि का पता है। आप ही के परम मित्र एक्स ने मुझे बताया है कि आपके
बाप-दादों ने बिजली देखी तक नहीं है। आप भी वहीं से आए हैं - पीपल के नीचे खाट
बिछाकर सोने वाले लोगों के बीच से। अब भले ही आपको ए.सी. के बिना चैन नहीं आता
हो!'
मिस्टर एक्स ने भी अपनी तरफ से जोड़ना जरूरी समझा - 'मेरे यहाँ भी यही हाल है।
दिनभर ए.सी. चलता है। पत्नी को थायराइड की शिकायत है। गर्मी ज्यादा लगती है
उनको! इसीलिए तो बिल छह हजार का आया है।'
छह हजार सुनकर मिस्टर जेड को जैसे करेंट लग जाता है। अपनी सिहरन को रोकते हुए
वह मन ही मन कहते हैं, 'छह हजार? मेरा तो दो हजार में ही दम निकल रहा है! मेरे
घर में तो रात में घंटे दो घंटे के लिए ही ए.सी. चलता है।'
मिस्टर जेड अपना बिजली बिल प्रकट कर जिल्लत नहीं झेल सकते थे, इसलिए उन्होंने
स्कूल बिल का रोना शुरू कर दिया - 'इस बार तो हमारे बेटे के स्कूल वालों ने
फीस काफी बढ़ा दी है। लगभग दुगुना कर दिया। बस का ही डेढ़ हजार कर दिया, जबकि
स्कूल हमारे घर से मुश्किल से पाँच किलोमीटर की दूरी पर है!'
'अब क्या कीजिएगा, जेड साहब? बच्चे को आप पैदल तो नहीं भेज सकते? न ही हमारे
पास इतना समय है कि बच्चे को स्कूल पहुँचाते-लाते रहें। हमें पे तो करना ही
पड़ेगा?' मिस्टर एक्स ने मिस्टर जेड के आँसुओें पर रूमाल रखने की कोशिश की।
लेकिन न जाने कैसे मिस्टर वाई के अंदर से अतीत पिघलकर निकलने लगा - 'हम अपने
बच्चों को अपना अतीत तो नहीं पकड़ा सकते न, जेड साहब? ठीक है कि हम दो-चार कोस
पैदल चलकर दूसरे गाँव के स्कूल पढ़ने जाते थे। साथ में बोरी ले जाते थे।
धूल-धक्कड़, गर्मी-सर्दी बर्दाश्त करते थे। मास्टर की छड़ी खाते थे। आप अपने
बच्चे को पैदल भेज सकते हैं? टीचर की मार खाते देख सकते हैं?'
'नहीं, वो तो आप ठीक कह रहे हैं। हम तो अपने बच्चों को सरकारी स्कूल तक नहीं
भेज सकते। सरकारी स्कूलों की जो स्थिति है, किसी से छुपी है?' मिस्टर जेड ने
मिस्टर वाई की बात का समर्थन करते हुए कहा - 'लेकिन इन स्कूलों की लूट का कोई
तो हिसाब होना चाहिए?' मिस्टर जेड झल्ला से गए।
मिस्टर एक्स ने मिस्टर जेड की बात में अपनी बात जोड़ते हुए कहा - 'वैसे इन
स्कूलों को मनमाने ढंग से फीस बढ़ाने का अधिकार तो है नहीं। सरकार इन्हें
कौड़ियों के भाव जमीन देती है!'
इस बीच मिस्टर एक्स और मिस्टर जेड की बातों से दूर मिस्टर वाई के मन में फिल्म
की रील की तरह एक दृश्य तेजी से घूम रहा था। मिस्टर जेड ने उन्हें टोका -
'कहाँ खो गए वाई साहब?'
मिस्टर वाई की तंद्रा टूटी, लेकिन वे बता नहीं सके कि वे कौन सा दृश्य देख रहे
थे? '...घर से बासी भात खाकर स्कूल को जाता एक बच्चा...! बासी भात खाने से
निकली बदबू...! कभी पाखाना लग जाने पर किसी गड्ढे के किनारे जाकर बैठ जाना...!
कभी मल खाने के लालच में सूअर के द्वारा पृष्ठ भाग का काटा जाना...!'
इस दृश्य को दबाकर उन्होंने कहा - 'अब देखिए! हम अपने बच्चों को वैसे स्कूल
में तो नहीं भेज सकते न, जहाँ पेशाब-पाखाना लगने पर किसी दीवार के पीछे या खेत
में जाना पड़े?'
'नहीं!' मिस्टर एक्स ने मोर्चा पकड़ा - 'अब तो हमारे बच्चों को ऐसी आदत हो गई
है कि टॉइलेट करने के बाद हाथ भी न लगाना पड़े और धुल जाए! फ्लश चलाइए, वही धो
देगा। हाथ भी गंदा होने से बच जाए!'
'लेकिन इस तरह के फ्लश से पानी की कितनी बरबादी होती है!' मिस्टर जेड ने हल्का
प्रतिरोध किया। लेकिन वह यह भी नहीं कह पाए कि उनके घर में फ्लश का इस्तेमाल
नहीं होता। धरती का पानी बचाने में उनका परिवार थोड़ा-बहुत योगदान तो कर ही रहा
है?
घर के अंदर बच्चों का हुड़दंग बढ़ चुका था। स्त्रियों की संख्या भी दो से चार हो
चुकी थी। जिनको आना था, लगभग आ चुके थे। इस बार दरअसल बुलाया ही कम लोगों को
गया था। पहले पचास-साठ लोग तो हो ही जाते थे। इस बार बहुत नजदीकी लोगों को ही
बुलाया गया था। हाँ, बच्चे जरूर सोलह-सत्रह आ गए थे। कुछ बड़े हो चुके बच्चों
को इस बार छोड़ दिया गया था। धीरे-धीरे संख्या और कम हो जाएगी!
अब केक काटने की रस्म पूरी करनी थी। सब लोग जुट आए। बच्चों ने घेरा बना लिया।
औरतें अगल-बगल खड़ी हो गई। तीनों मर्द भी अंदर आ गए। अंदर आते ही मर्द और औरतों
ने दुआ-सलाम का आदान-प्रदान किया। मिस्टर एक्स ने मिसेज डब्ल्यू से औपचारिकता
निभाते हुए पूछा - 'भाभीजी, आप अकेली? मिस्टर डब्ल्यू कहाँ रह गए?' मिसेज
डब्ल्यू ने झूठ का सहारा लेते हुए कहा - 'आज अभी तक आए ही नहीं है। ऑफिस में
देरी हो गई!'
केक कटा। 'हैप्पी बर्थ-डे टू यू' हुआ। अंकुर ने अपने आस-पास के बच्चों और
आंटी, मम्मी, अंकल, पापा को एक-दूसरे का जूठा केक खिलाया। मिस्टर जेड
जान-बूझकर पीछे खड़े रहे। दूसरे का जूठा केक खाते उन्हें घिन आती है। पीछे
खड़े-खड़े वे इन रस्मों पर खीझते रहे। हालाँकि उनमें भी इतनी हिम्मत नहीं है कि
इन रस्मों को तोड़ पाएँ, इसलिए अपने बेटे के जन्मदिन पर बेमन से ही सही, उन्हें
निभाते रहते हैं।
औरतों ने बच्चों और बड़ों को केक-वेफर्स की प्लेट पकड़ाई। बच्चों ने मजे ले-लेकर
खाया। उधर मिस्टर एक्स और मिस्टर वाई के लिए यह खाद्य सामग्री शेर के सामने
सूखी घास की तरह थी, सो इन दोनों ने एक-दूसरे से इशारे में बतियाया - 'कोई
इंतजाम नहीं है?'
'हाँ, हाँ, क्यों नहीं।'
'अरे! जब ये बच्चे आनंद मना रहे हैं तब उन्हें आनंद मनाने का हक नहीं है,
जिनकी वजह से ये आज धरती पर हैं?' मिस्टर वाई ने विहँसते हुए कहा।
'चलिए, चलते हैं। यहीं पास में अब यह सुविधा उपलब्ध है।' मिस्टर एक्स ने कहा।
'नहीं, नहीं, ऐसे मजा नहीं आएगा। चलिए गाड़ी निकाल लेते हैं। चलती गाड़ी को
मयखाना बनाने का मजा ही कुछ और है।' मिस्टर वाई ने कहा।
मिस्टर जेड दुविधा में थे। उनके साथ जाएँ या अपने घर जाकर टी.वी. देखें? तब तक
मिस्टर वाई ने कह दिया - 'आज तो अपना ब्रह्मचर्य तोड़ दीजिए जेड साहब! उस
'सुरा-सुंदरी' से इतनी बेरुखी क्यों?'
'बस, रहने दीजिए इस जनम में। अगले जनम में देखा जाएगा!' मिस्टर जेड ने जवाब
दिया।
'साथ तो चल सकते हैं?' मिस्टर एक्स ने पूछा।
'ठीक है, चलिए!' अनमनेपन से मिस्टर जेड ने जवाब दिया।
मिस्टर एक्स ने अपनी पत्नी से कहा - 'हम लोग जरा घूमकर आते हैं।' मिस्टर एक्स
के साथ-साथ मिस्टर वाई की पत्नी ने भी घूमकर आने की बात सुनी। दोनों समझ गईं।
'ठीक है' के अलावा कहने को उनके पास कुछ भी नहीं था।
बस दो मिनट की ड्राइव के बाद वे दुकान तक पहुँच गए। वहाँ से ब्लैक लेवल की
बोतल खरीदी। बगल वाली दुकान से कोल्ड ड्रिंक और दो गिलास खरीदे और सफर पर निकल
पड़े। ड्राइवर की सीट पर बैठे मिस्टर वाई ने गुलाम अली की सीडी लगा दी। बगल
वाली सीट पर बोतल और गिलास को संतुलित करते मिस्टर एक्स पैग बनाने लगे। पीछे
वाली सीट पर बैठे मिस्टर जेड शराब की गंध सूँघते हुए गुलाम अली को सुनने लगे।
बहुत बार सुनी हुई गजल 'हंगामा है क्यूँ बरपा, थोड़ी सी जो पी ली है' को इस
सार्थक प्रसंग के साथ सुनकर वे बोल पड़े - 'गुलाम अली की इस गजल को लोगों ने
मयखाने की चीज बनाकर छोड़ दिया है!'
'अजी जेड साहब! आपको आपत्ति है तो लीजिए इसे बंद कर देता हूँ। आप दूसरी
सुनिए!' मिस्टर वाई ने कहा और रिमोट के सहारे उस मयखाने में दूसरी गजल बजा दी
- 'ये किसने कह दिया आखिर के छुप-छुपा के पियो...!'
'शुक्र है, यह गजल अभी तब बची हुई थी। आप तो इसे भी मयखाने में घसीट लाए!'
मिस्टर जेड ने कहा और फिर पीछे सिर टिकाकर गजल में खुद को रमा दिया।
'गमे जहाँ को गमे जिस्त को भुला के पियो
हसीन गीत मोहब्बत के गुनगुना के पियो...!'
'अब देखिए, इस लग्जरी कार में घूमते हुए हम वह आनंद उठा रहे हैं, जो बस के
धचके या मेट्रो की भीड़ में नहीं उठा सकते। है कि नहीं जेड साहब? ...अब आप भी
कार ले ही लीजिए! क्या मेट्रो में धक्के खाते रहते हैं? मेट्रो की भीड़ में भी
क्या कम गंद होती है? अरे आप हमसे कम थोड़े ही कमाते हैं?' मिस्टर वाई ने एक
हाथ से ड्राइव करते हुए और एक हाथ से घूँट लेते हुए कहा।
'वाई साहब! मैं मेट्रो में ही ठीक हूँ। वैसे भी मुझे गाड़ी-बाइक चलाते डर लगता
है।'
'डरने की क्या बात है? मैं आपको चलाना सिखा दूँगा। हम लोग कौन पेट से सीखकर आए
थे? अरे! हम भी तो उसी गाँव से हैं, जहाँ बैलगाड़ी या ट्रैक्टर के पीछे भागते
बच्चे आनंद उठाया करते हैं? लेकिन सच बताइए, यह आनंद अच्छा है या वह? ...जब आप
अपनी बीवी को, अपने बच्चे को अपनी गाड़ी पर घुमाने ले जाते हैं, तब आप एक तरह
से उस दुख को भगा रहे होते है जो आपकी माँ या दादी ने बैलगाड़ी पर बैठकर मेला
जाते हुए उठाया होगा!' मिस्टर वाई का नशा उन्हें दार्शनिकता की ओर ले जा रहा
था।
'देखिए, कार आज 'आवश्यक-आवश्यकता' की श्रेणी में आ गई है।' मिस्टर एक्स ने
कहना शुरू किया - 'अर्थशास्त्र में हमने तीन तरह की आवश्यकताओं के बारे में
पढ़ा था। रोटी-कपड़ा और मकान की तरह ही कार आज आवश्यक-आवश्यकता हो गई है।'
'मैं इस बात को नहीं मानता, एक्स साहब!' मिस्टर जेड ने जवाब देना जरूरी समझा।
'हमारे जैसे खाते-पीते मध्यवर्गीय लोगों ने इसे 'विलासिता' से
'आवश्यक-आवश्यकता' की श्रेणी में ला खड़ा किया है। रोटी-कपड़ा-मकान की तरह इसे
जरूरी बताना इस देश की अधिकांश गरीब जनता का अपमान करना है!'
'अजी, क्या गरीबों को लेकर बैठ गए? क्या आप चाहते हैं कि हम भी गरीब हो जाएँ?
गरीबों की तरह बस में धक्के खाएँ? झुग्गी-झोपड़ी में रहें?' मिस्टर वाई ने
कुछ-कुछ तीखे स्वर में पूछा - 'जेड साहब! अगर मैं कहूँ कि आप अपने फ्लैट में
दो-चार झुग्गीवासियों को रहने दें तो रहने देंगे? '...नहीं, जेड साहब, नहीं!
आप या हम ऐसा नहीं कर पाएँगे!'
'यही तो हमारा अंतर्विरोध है। हम जो नहीं कर पाएँगे, उसी की वकालत करते हैं।
बड़ी मुश्किल से तो हम अपनी गरीबी से निकलकर बाहर आए हैं। फिर से उसी गरीबी में
हरगिज नहीं रह पाएँगे!' मिस्टर एक्स ने मिस्टर वाई के पक्ष में अपनी टिप्पणी
जड़ी।
'देखिए, मैं यह नहीं कहता कि हम झोंपड़ी बनाकर रहने लग जाएँ, लेकिन कार को मैं
लग्जरी ही मानता रहूँगा।' मिस्टर जेड ने कहा।
'मैं आपको बताता हूँ।' मिस्टर वाई ने कहना शुरू किया - 'मेरे पिता जी हैं।
गाँव में रहते हैं। जब हम लोग गाँव जाते हैं तो प्लेन से जाकर टैक्सी लेते है
और गाँव पहुँचते हैं। पिता जी को यह बहुत नागवार गुजरता है। उनको लगता है कि
मैं बेकार पैसे खर्च करता हूँ। अब उन्हें कौन समझाए कि अब ट्रेन की ए.सी. बोगी
में भी यात्रा कितनी कठिन हो गई है? यहाँ सब्जी बेचने वाला शख्स भी अब ए.सी.
से चलने लगा है। हमारे लिए उसमें चलना मुश्किल हो गया है। फिर गाँव तक अगर हम
बस से जाएँ तो हमारी क्या हालत होगी? भीड़-धक्का-गंद-पसीना! हमारे लिए झेलना
आसान है क्या?'
'मजे की बात यह है', मिस्टर वाई बोलते रहे, 'कि वही पिता जी जिन्हें टैक्सी का
खर्च गैर-जरूरी लगता है, जब यहाँ आते हैं और मैं कार लेकर उन्हें रिसीव करने
जाता हूँ तो उनकी खुशी छुपाए नहीं छुपती है। अब जरा सोचिए कि अगर मैं उन्हें
कहूँ कि पिता जी अपने सिर पर अपना बक्सा रखकर पैदल मेरे घर चले आइए या वहाँ से
फलाँ बस लेकर यहाँ तक चले आइए तो उन्हें कैसा लगेगा? ...कहना बहुत आसान है,
जेड साहब!'
'अरे! कहाँ-कहाँ की बात ले बैठे आप लोग?' मिस्टर एक्स बीच-बचाव करने लगे। 'कुछ
और बात कीजिए!'
'देखिए, जेड साहब!' अब मिस्टर एक्स मिस्टर जेड के मुखातिब थे, 'अब हमारा वर्ग
बदला गया है। हम फिर से पुराने वर्ग में नहीं जा सकते, बल्कि कहूँ कि जा ही
नहीं पाएँगे। इसलिए खाइए, पीजिए और मौज कीजिए। लीजिए एक पैग आज की इस शाम के
नाम!'
मिस्टर एक्स जानते थे कि यह अड़ियल टट्टू जाम नहीं थामेगा, इसलिए बस कहकर रह
गए। उधर गुलाम अली गाने को मजबूर थे -
'खाली है अभी जाम, मैं कुछ सोच रहा हूँ,
ऐ गर्दिश-ए-अय्याम मैं कुछ सोच रहा हूँ।'
निश्चय ही मिस्टर जेड कुछ सोच रहे थे, बल्कि बहुत कुछ सोच रहे थे। लेकिन कुछ
कहकर इन दो पिए हुए लोगों को और उकसाना नहीं चाहते थे। वह चुप हो गए। चुपचाप
सुनते रहे -
'साकी तुझे थोड़ी सी तकलीफ तो होगी,
सागर को जरा थाम, मैं कुछ सोच रहा हूँ!'
'पंडित जी!' गुलाम अली की आवाज को काटते हुए चलती कार में मिस्टर वाई की आवाज
गूँजी -' एक अरमान शेष ही रह गया जीवन का!'
'वो क्या?' मिस्टर एक्स ने उत्सुक होकर पूछा।
'चलती कार में सेक्स करने का अरमान!'
'तो कर लो पूरा।'
'कैसे?'
'देखिए वाई साहब! अपहरण आप कर नहीं सकते। बलात्कार कर नहीं सकते...!'
'क्यों नहीं कर सकता? ...इतने बड़े-बड़े बाबा कर सकते है, नेता कर सकते है,
पत्रकार कर सकते हैं, मैं क्यों नहीं कर सकता?'
'आप नहीं कर सकते क्योंकि आप न तो बाबा हैं, न नेता, न पत्रकार! आप कानून से
डरने वाले मिडिल क्लास के आदमी हैं। इसलिए एक ही उपाय है! भाभी से ही यह मनोरथ
पूर्ण कर लेना। मैं आपका ड्राइवर बन जाऊँगा!' मिस्टर एक्स ने उपाय बता दिया!
'भाभी की तो पूछो ही मत! वह तो पूरी भक्तिन हो गई हैं। उन्हें इन चीजों से
सख्त एलर्जी हो गई है। बाबा देवस्वरूप की भक्त बनने के बाद तो और भी!' मिस्टर
वाई ने गहरी साँस लेते हुए कहा - 'आपके मजे हैं यार! घर में भाभी जैसी नारी,
पड़ोस में गंजू की बीवी और ऑफिस में मिसेज संपत! मेरा जीवन तो बस... यूँ
ही...!'
'चलिए, वाई साहब! अब घर चलिए। आपको परेशानी हो तो मैं गाड़ी चला लेता हूँ।'
मिस्टर एक्स बोले।
'नहीं एक्स साहब! मैं तो रात भर गाड़ी चला सकता हूँ, बशर्ते कोई चलाने दे!'
मिस्टर वाई की बात पर मिस्टर एक्स हँस पड़े। मिस्टर वाई ने गाड़ी घर की दिशा में
कर ली और कहा - 'अब तो लगता है पंडित जी, कि दो-तीन महीने बाद रक्षाबंधन आ रहा
है, उस दिन बीवी से राखी ही बँधवा लूँ!'
मिस्टर वाई की बात पर मिस्टर एक्स तो ठहाका मार कर हँस ही पड़े, मिस्टर जेड भी
खुद को हँसने से रोक नहीं सके। थोड़ी देर के लिए गुलाम अली की आवाज ठहाकों में
गुम हो गई, फिर सुनाई देने लगी -
'फिर आज अदम शाम से गमगी है तबीयत
फिर आज सरे शाम मैं कुछ सोच रहा हूँ...!'
गाड़ी सोसाइटी के बाहर आकर रुक गई। मिस्टर एक्स और मिस्टर जेड गाड़ी से उतर गए।
मिस्टर वाई गाड़ी पार्क करने लगे। पार्क कर जैसे ही वह उतरने लगे, उनके गले में
एक भभका-सा उठा। क्षण भर में स्टेयरिंग, ब्रेक, गियर, एक्सलेटर, क्लच वगैरह
उनकी उलटियों से नहा गए। उनको इस स्थिति में देखकर मिस्टर एक्स और मिस्टर जेड
ने उन्हें गाड़ी से निकाला। मिस्टर एक्स पानी लाने अपने घर की ओर भागे। घर
पहुँचने से पहले ही उन्हें भी एक हौल सा आया। वह पार्क की ओर भागे। पार्क तक
जाते-जाते वह अपने-आप को नहीं रोक पाए। धरती का एक टुकड़ा उनकी उलटियों से
आच्छादित हो गया। उनको इस स्थिति में देख वहाँ खड़े दो कुत्ते एकाएक भौंकने
लगे।
उधर घर में मिसेज एक्स, मिसेज वाई और मिसेज जेड के बच्चे अपनी धुन में खेल रहे
थे। बाकी बच्चे जा चुके थे। मिसेज डब्ल्यू भी अपने घर जा चुकी थीं। मिसेज
एक्स, मिसेज वाई और मिसेज जेड खाने पर मिस्टर एक्स, मिस्टर, वाई और मिस्टर जेड
की प्रतीक्षा कर रही थीं, जबकि मिस्टर एक्स अभी भी उलटियाँ कर रहे थे, मिस्टर
वाई उलटियाँ कर पानी की प्रतीक्षा कर रहे थे और मिस्टर जेड सोसाइटी गेट पर
चुपचाप खड़े थे!